भारतीय रसायन के पिता आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे की जयंती पर व्याख्यान का आयोजन विज्ञान भारती उदयपुर इकाई एवं बीएन कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बीएन विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में कार्यक्रम सम्पन्न उदयपुर, 2 अगस्त। भारतीय रसायन के पिता आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रे की जयंती के अवसर पर विज्ञान भारती उदयपुर इकाई (चित्तौड़ प्रांत) एवं बीएन कॉलेज ऑफ फार्मेसी, बीएन विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य आचार्य पी.सी. रे के वैज्ञानिक योगदान एवं उनके देशभक्ति से ओतप्रोत जीवन पर प्रकाश डालना था। ज्ञातव्य है कि भारत की पहली फार्मा कंपनी आचार्य रे ने ही बंगाल केमिकल एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड, कोलकाता में 1901 में प्रारंभ की थी। कार्यक्रम में विज्ञान भारती के उद्देश्य एवं गतिविधियों की जानकारी डॉ. अमित गुप्ता द्वारा दी गई। आचार्य पी.सी. रे के जीवन और कार्यों पर मुख्य व्याख्यान डॉ. लोकेश अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत किया गया। उन्होंने बताया कि कैसे आचार्य रे ने विज्ञान को समाज की सेवा का माध्यम बनाया और रसायन विज्ञान में भारत को आत्मनिर्भर बनान...
प्रकाश विद्युत प्रभाव
प्रकाश विद्युत प्रभाव
- जब उपयुक्त आवृत्ति या विद्युत—चुम्बकीय विकिरण का प्रकाश किसी धातु की सतह पर आपतित होता है, तो उस सतह से इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन होता है।
- किसी धातु की सतह को उपयुक्त तरंगदैर्ध्य या आवृत्ति के प्रकाश द्वारा प्रदीपन करने पर उस सतह से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की प्रक्रिया प्रकाश विद्युत प्रभाव कहलाती है।
- इस प्रकार उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन फोटो—इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं।
प्रायोगिक व्यवस्था
- T = एक निर्वातित कांच की नली है, जिसमें एक क्वार्ट्स की खिड़की W है।
- P = प्रकाश विद्युत संसुचक प्लेट है।
- C = एक खोखला बेलन है, जिसमें प्रकाश के आपतन के लिए एक छोटा छिद्र होता है।
- G = एक संसुचित धारामापी या अमीटर है।
- P को G की सहायता से बैटरी के ऋणात्मक सिरे से जोड़ा जाता है।
- C बैटरी के धनात्मक सिरे से जुड़ा है।
कार्य प्रणाली
- जब किसी स्रोत से एक उपयुक्त आवृत्ति का प्रकाश P पर आपतित होता है, तो इससे फोटो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते हैं।
- चूंकि संग्राहक कैथोड़ C, बैटरी के धनात्मक सिरे से जुड़ा है, इसलिए ये इलेक्ट्रॉन C की ओर आकर्षित होते हैं।
- अतः P से C की ओर प्रकाश विद्युत धारा (IC) प्रवाहित होती है तथा इस धारा का G द्वारा पता लगाया जा सकता है या इसे मापा जा सकता है।
- जैसे—जैसे C, P के सापेक्ष धनात्मक होता जाता है, IC का मान बढ़ता जाता है।
प्रकाश विद्युत—उत्सर्जन के नियम
- प्रत्येक धातु के लिए एक विशेष आवृत्ति होती है, जिससे नीेचे की आवृत्ति पर प्रकाश—विद्युत उत्सर्जन नहीं होता है।
- प्रकाश—विद्युत उत्सर्जन के लिए आवश्यक न्यूनतम आवृत्ति, देहली आवृत्ति कहलाती है।
- जैसे—जैसे आपतित प्रकाश की तीव्रता (IP) बढ़ती है, IC का मान भी बढ़ता है, अर्थात् IC ∝ IP
- जब आपतित प्रकाश की आवृत्ति देहली आवृत्ति से अधिक हो जाती है, तो प्रकाश विद्युत उत्सर्जन की घटना दिखाई देती है।
- C का धनात्मक विभव बढ़ाने पर, IC का मान बढ़ता है तथा एक विशेष विभव पर यह अधिकतम हो जाता है।
- प्रकाश—विद्युत धारा का यह अधिकतम मान, संतृप्त धारा कहलाता है।
- C का ऋणात्मक विभव बढ़ाने पर IC का मान घटता है तथा एक विशेष विभव पर यह शून्य हो जाता है।
- उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा आपतित प्रकाश पर निर्भर नहीं करती है, यह केवल आपतित प्रकाश की आवृत्ति तथा तथा धातु की प्रकृति पर निर्भर करती है।
- प्रकाश विद्युत उत्सर्जन एक तात्क्षणिक घटना है।
विद्युत—चुम्बकीय सिद्धान्त की असफलताएं
- गणना यह दर्शाती है कि 4000Å तरंग दैर्ध्य के दृश्य प्रकाश को यदि सोडियम की सतह पर डाला जाए तो इलेक्ट्रॉन के उत्सर्जन में 500 दिन लगते हैं, जबकि प्रायोगिक रूप में कोई समय पश्चता नहीं होती है।
- चिरसम्मत सिद्धान्त के अनुसार अधिक तीव्रता का प्रकाश, उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन को अधिक गतिज ऊर्जा प्रदान करता है। परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है।
- चिसम्मत सिद्धान्त यह दर्शाता है कि उत्सर्जित इलेक्ट्रॉन का वेग (ऊर्जा) आपतित प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भर नहीं करता है, परन्तु वास्तव में यह निर्भर करता है।
प्रकाश विद्युत प्रभाव के बारे में और अधिक जानने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://youtu.be/PngC60Z3Yq4 या https://youtu.be/o3AmSozpY5E
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