चार महीने का बच्चा कैसे बना अरब़पति? जन्म के सिर्फ चार माह बाद यदि कोई बच्चा अरबपति बन जाए तो इसे उसकी किस्मत ही कहेंगे। भारत के एकाग्रह रोहन मूर्ति नाम के बच्चे की किस्मत कुछ इसी प्रकार चमकी है। देश की दूसरी सबसे बड़ी आइटी कम्पनी इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने सोमवार अपने चार महीने के पोते एकाग्रह मूर्ति को 240 करोड़ रूपए के शेयरों की हिस्सेदारी का तोहफा देकर उसे शायद देश का सबसे कम उम्र का अरबपति बना दिया है। BSE की फाइलिंग के अनुसार इंफोसिस में अब एकाग्रह रोहन की 15 लाख शेयरों की हिस्सेदारी हो गई है। इसका मतलब अब एकाग्रह रोहन इंफोसिस का 0.04% का हिस्सेदार है। शेयरों के स्थानान्तरण के बाद नारायण मूर्ति के पास कम्पनी के कुल शेयरों का 0.36% हिस्सा बचा है। जिस समय नारायण मूर्ति द्वारा अपने पोते को शेयर देने की खबर बाई उस समय इंफोसिस के शेयरों में गिरावट देखने को मिल रही थी। एकाग्रह रोहन, नारायण मूर्ति तथा सुधा मूर्ति के बेट रोहन मूर्ति और उनकी पत्नि अर्पणा कृष्णन का बेटा है। आपको यह पता होगा कि नोरायण मूर्ति ने अपनी पत्नि सुधा मूर्ति से 10 हजार रूपए उधार लेकर 1981 में इंफोसिस क
डी-ब्रोगली परिकल्पना
- डी-ब्रोगली के अनुसार एक गतिमान कण से सदैव एक तरंग सम्बद्ध होती है। यह तरंग डी-ब्रोगली तरंग या पदार्थ तरंग कहलाती है।
- अतः एक पदार्थ तरंग की प्रकृति कण प्रकृति के साथ-साथ तरंग प्रकृति भी होती है, अर्थात द्वैत प्रकृति होती है।
- विकिरण के क्वांटम सिद्धान्त से, फोटॉन की ऊर्जा, E = h𝝂, जहां 𝝂 = आपतित फोटॉन की आवृति
- आइन्सटीन के आपेक्षिकता के सिद्धान्त से E = √(m02c4 + p2c2)
- यदि m0 = 0 हो, तो E = pc, p = संवेग तथा c = प्रकाश का वेग
- अब E = h𝝂 तथा E = pc
- ∴ h𝝂 = pc ⇒ p = h𝝂/c
- ∵ c = 𝝂λ ⇒ λ = c/𝝂
- ∴ p = h/λ ⇒ λ = h/p यह डी-ब्रोगली तरंग दैर्ध्य कहलाती है।
- यह तरंगदैर्ध्य सदैव एक फोटॉन से सम्बद्ध होती है।
- चूंकि संवेग कण प्रकृति का अभिलाक्षणिक है तथा तरंग-दैर्ध्य तरंग प्रकृति का अभिलाक्षणिक है।
- अतः एक गतिमान कण से सदैव एक तरंग सम्बद्ध होती है।
निष्कर्ष
- कण की तरंगदैर्ध्य, कण के आवेश या प्रकृति पर निर्भर नहीं करती है।
- विद्युत-चुम्बकीय तरंगें केवल आवेशित कण द्वारा उत्पन्न होती हैं। अतः पदार्थ तरंग की प्रकृति विद्युत-चुम्बकीय नहीं है।
- ∵ λ = h/p तथा p = mv ⇒ λ ∝ 1/v तथा λ ∝ 1/m, v = कण का वेग
- कण का वेग जितना अधिक होगा, उसकी तरंगदैर्ध्य उतनी कम होगी।
- कण जितना भारी होगा, उसकी तरंगदैर्ध्य उतनी ही कम होगी।
- यदि v का मान c के तुलनीय हो, तो m = m0/√(1 − v²/c²)
विभिन्न कणों के लिए डी-ब्रोगली तरंग दैर्ध्य
- यदि एक इलेक्ट्रॉन V विभवान्तर से त्वरित होता है, तो
- इसके द्वारा ग्रहण की गई ऊर्जा E = eV
- यदि m0 इलेक्ट्रॉन का विराम द्रव्यमान, तथा v इलेक्ट्रॉन का वेग हो, तो
- इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा, E = ½ m0v² ⇒ v = √(2E/m0)
- यदि वेग के साथ द्रव्यमान में आपेक्षकीय परिवर्तन नगण्य हो, तो m ≈ m0
- ∴ v = √(2E/m)
- परन्तु E = eV
- ∴ v = √(2eV/m)
- ∵ डी-ब्रोगली तरंग दैर्ध्य λ = h/mv तथा v = √(2eV/m)
- ∴ λ = h/√2meV ⇒ λ = 12.27/√V Å
- किसी भी आवेशित कण के लिए λ = h/√2mqV
- किसी भी द्रव्यमान वाले कण के लिए λ = h/√2mE जहां E गतिज ऊर्जा है।
- यदि कोई पदार्थ कण T परम् ताप पर ऊष्मीय साम्यावस्था में हो, तो
- E = 3/2 kT जहां k बोल्ट्जमान नियतांक तथा T परम् ताप है।
- ∵ λ = h/√2mE ∴ λ = h/√3mkT
डी-ब्रोगली परिकल्पना से बोहर परिकल्पना
- बोहर अभिधारणा के अनुसार एक इलेक्ट्रॉन नाभिक के चारों ओर केवल उन्हीं कक्षाओं में चक्कर लगा सकता है, जिसमें कोणीय संवेग का मान h/2π का पूर्ण गुणज होता है।
- ∴ mvr = nh/2π
- चूंकि प्रत्येक गतिमान कण से सदैव एक तरंग सम्बद्ध होती है, इसलिए 2πr = nλ
- यहां 2πr स्थाई कक्षा की परिधि है।
- डी-ब्रोगली परिकल्पना से, λ = h/mv
- अब 2πr = nλ तथा λ = h/mv
- ∴ 2πr = nh/mv ⇒ mvr = nh/2π
- जो बोहर परिकल्पना है।
To know more about this lecture please visit on https://youtu.be/epAlDO7-O3M
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