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महाराणा प्रताप ट्रेल सज्जनगढ़ उदयपुर

महाराणा प्रताप ट्रेल सज्जनगढ़ उदयपुर में इको ट्रेल 30 नवम्बर को राजस्थान वन विभाग उदयपुर डिविजन तथा WWF-India उदयपुर डिविजन के सानिध्य में महाराणा प्रताप ट्रेल सज्जनगढ़ उदयपुर में इको ट्रेल की गई, जिसमें WWF-India के स्टेट काॅर्डिनेटर श्रीमान अरूण सोनी तथा वन विभाग कीे ओर से डाॅ. सतीश कुमार शर्मा, सेवानिवृत्त अधिकारी मौजूद थे। मुझे भी इस इको ट्रेल में जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ, जो गोरीला व्यू पाॅइंट से बड़ी-लेक व्यू पाॅइंट तक की गई इसमें मुझे विज्ञान की एक नई शाखा के बारे में पता चला, जिसे टट्टी विज्ञान कहा जाता है। सुनने में आपको थोड़ा अजीब लगेगा, मुझे भी सुनकर हैरानी हुई, परन्तु वास्तव में एक ऐसा भी विज्ञान है, जिसके बारे में डाॅ. सतीश शर्मा ने बड़े ही विस्तार पूर्वक बताया कि किस प्रकार वनों में जानवरों की टट्टी देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि यहां कौनसा जानवर आया था। जानवरों की टट्टी कितनी पुरानी है, वह गीली है या सूखी है। इसी के आधार पर उस विशेष जंगल में कौन-कौनसे जानवर विचरण करते हैं, उसके बारे में वन विज्ञान के कर्मचारी पता लगा लेते हैं। जानवरों की टट्टी का विश्लेषण करके यह पता लगा...

नशा देने वाले भांग के पौधों से बन रहे कपड़े

नशा देने वाले भांग के पौधों से बन रहे कपड़े

भांग का उपयोग प्रायः नशे में किया जाता है, लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि भांग के पौधे से कपड़े भी बनाए जा रहे हैं। जोधपुर के दो युवाओं अंकित नागौरी तथा आकाश सेन ने स्टार्टअप के तहत यह काम शुरू किया है। इनके द्वारा भांग के पौधों से तैयार कपड़ों का चार देशों में निर्यात हो रहा है। राजस्थान में इस प्रकार का नवाचार करने वाले यही दो युवा हैं। इनका अगला लक्ष्य राजस्थान सरकार के साथ जुड़कर इस प्रोजेक्ट को नया आयाम देना है। दोनों युवाओं ने 2021 में ईको अर्थ नामक स्टार्टअप को धरातल पर उतारा। अंकित ने बताया कि हमारा लक्ष्य पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है। उन्होंने बताया कि प्रारम्भ में लोगों को समझाने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था, परन्तु अब भांग से निर्मित कपड़ों की मांग काफी बढ़ गई है। 

भांग के पौधों से बने कपड़े से पेंट-शर्ट के अलावा, जूते, कम्बल, बैग, बेडशीट, टोपी, मौजे और टॉवल भी बनाए जा सकते हैं। साथ ही कंसट्रक्शन मेटेरियल भी बनाया जा सकता है, जिसमें हेम्पक्रीट, प्लास्टर पाउडर मुख्य है। साथ ही भांग के बीज, तेल, दूध और अन्य खाद्य पदार्थ भी बनाए जाते हैं, जिन्हें सरकार ने वैद्यता प्रदान की हुई है। भांग के पौधों से पेपर, बायो फ्यूल, कॉस्मिटिक्स आइटम भी बनाए जाते है। 

कारण जिसकी वजह से अधिक उपयोगी ही भांग से निर्मित कपड़े 

भांग की तुलना में कॉटन को दुगुनी जगह की जरूरत होती है। 1 किलो कॉटन उत्पादन के लिए 9 लीटर से अधिक पानी की आवश्यकता होती है, जबकि भांग 2 लीटर पानी में ही उग जाती है। भांग का फाइबर कॉटन की अपेक्षा 4 गुना अधिक ड्यूरेबल है। कॉटन की तुलना में भांग अधिक तीव्रता से अपघटित हो जाता है।

सोजन्यः राजस्थान पत्रिका न्यूज

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